शनि वज्र पञ्जर कवच



शनि वज्र पञ्जर कवच

विनियोगः- 
ॐ अस्य श्रीशनैश्चर-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्द, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः, शूं कीलकम्, शनैश्चर-प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।।


नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।१

ब्रह्मोवाच-
श्रृणुषवमृषयः सर्वे शनिपीड़ाहरं महप्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।२
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।३
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः।
नेत्रे छायात्मजः पातु, पातु कर्णौ यमानुजः।।४
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा।
स्निग्ध-कंठस्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः।।५
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा।।६
नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटि तथा।
ऊरु ममांतकः पातु यमो जानुयुग्म तथा।।७
पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनन्दनः।।८

फलश्रुति
इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीडा प्रोतो भवति सूर्यजः।।९
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा।
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः।।१०
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।११
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः।।१२
।।श्रीब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारद-संवादे शनि-वज्र-पंजर-कवचं।।

सूची

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