दशहरा ( विजयदशमी )

दशहरा (विजयदशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था।

शास्त्रों के अनुसार जब राजा दशरथ अपने बेटे श्रीराम का राज्याभिषेक कर रहे थे। तब देवता खुश नहीं थे। क्योंकि रामावतार दैत्यों और राक्षसों के नाश के लिए हुआ था। देवताओं ने अनुभव किया कि यदि राम अभिषेक के बाद राजकाज में व्यस्त हो गए तो राक्षसों का नाश कौन करेगा? ऐसे में उद्देश्य को पूरा करने के लिए देवताओं ने सरस्वती को प्रेरित कर राम की सौतेली मां कैकेयी की दासी मंथरा की मति फेर दी। अंतत: कैकेयी ने कोप किया और रामकथा के अनुसार दशरथ की आज्ञा पर राम वन को चले गए। साथ में सीता और लक्ष्मण भी थे। फिर हुआ राक्षसों का वध सारी घटनाएं देवताओं के अनुकूल हुईं, जो राक्षसों के विनाश का आधार बनीं। कथा का समापन यात्रा के समापन की तरह ही रावण वध के साथ हुआ। 

रावण समूची राक्षस जाति का मुखिया था। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था (साधारण से दस गुणा अधिक मस्तिष्क शक्ति), जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। पिता विश्रवा ऋषि थे। कैकसी दैत्य कन्या थीं।  विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला (अशुभ समय - कु-बेला) में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये। उसके पश्‍चात् शूर्पणखा और विभीषण के जन्म हुये। दशग्रीव और कुम्भकर्ण अत्यन्त दुष्ट थे, किन्तु विभीषण धर्मात्मा प्रकृति का था। अपने भाई वैश्रवण से भी अधिक पराक्रमी और शक्‍तिशाली बनने के लिये दशग्रीव ने अपने भाइयों सहित ब्रह्माजी की तपस्या की। ब्रह्मा के प्रसन्न होने पर दशग्रीव ने माँगा कि मैं गरुड़नागयक्षदैत्यदानवराक्षस तथा देवताओं के लिये अवध्य हो जाऊँ। रावण ने 'मनुष्य' से इसलिये नही कहा क्यों के वो मनुष्य को कमजोर तथा बलरहित समझता था| ब्रह्मा जी ने 'तथास्तु' कहकर उसकी इच्छा पूरी कर दी। विभीषण ने धर्म में अविचल मति का और कुम्भकर्ण ने वर्षों तक सोते रहने का वरदान पाया।वो एस वजह्से कि इन्द्रने मा सरस्वती को कहा कि जब कुम्भकर्ण वरदान मांग रहा हो तब आप उसका ध्यान विचलित करे। स प्रकार रावण के भाई विभिषण, कुंभकर्ण और बहन सूर्पणखा के साथ ही देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव भी रावण के भाई हैं। 
पुलत्स्य ऋषि के उत्कृष्ट कुल में जन्म लेने के बावजूद रावण का पराभव और अधोगति के अनेक कारणों में मुख्य रूप से दैविक एवं मायिक कारणों का उल्लेख किया जाता है। दैविक एवं प्रारब्ध से संबंधित कारणों में उन शापों की चर्चा की जाती है जिनकी वजह से उन्हें राक्षस योनि में पैदा होना पड़ा। मायिक स्तर पर शक्तियों के दुरुपयोग ने उनके तपस्या से अर्जित ज्ञान को नष्ट कर दिया था।राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बावजूद अशुद्ध, राक्षसी आचरण ने उन्हें पूरी तरह सराबोर कर दिया था |सत्ता के मद में रावण उच्छृंखल हो अनेक राजा महाराजाओं को पराजित करता हुआ देवताओं, ऋषियों, यक्षों और गन्धर्वों को नाना प्रकार से कष्ट देने लगा। रावण की उद्दण्डता में कमी नहीं आई। राक्षस या मनुष्य जिसको भी वह शक्‍तिशाली पाता, उसी के साथ जाकर युद्ध करने लगता। इसी क्रम में आगे जाकर राम रावण युद्ध हुआ 

वैसे तो रावण बहुत परम ज्ञानी पंडित था। लेकिन राक्षसिय प्रवति एवं मन में अहंकार के भाव के चलते उन्होंने वनवास के दौरान सीता का हरण करके लंका ले गया और उसे अशोक वाटिका में कैद करके रखने दुस्साहस किया था। जिसके परिणाम स्वरूप भगवान राम राक्षसराज रावण से युद्ध हेतु प्रेरित हुए । तत्पश्चात श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण एवं परम भक्त हनुमान जी  सहित अपने मित्र वानरराज सुग्रीव की वानर सेना की सहायता से रावण से युद्ध किया तथा श्रीराम द्वारा छोड़े गए 31 बाणों से रावण का अंत हुआ। श्रीराम के 10 दस बाणों से रावण के दसों सिर धड़ से अलग हो गए। 20 बाणों से रावण बीसों हाथ कट गए और एक बाण रावण की नाभी में लगा जिससे रावण की मृत्यु हुई| उसके बंधु-बांधवों और सेना सहित नाश के साथ रामावतार की पूर्णता हुई। 

इस अर्थ में विजयादशमी का पर्व धर्म की स्थापना और अधर्म की पराजय का पर्व है।इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था। और सारा समाज भयमुक्त हुआ था।उन्होंने रावण को युद्ध में परास्त करके उन्हें मुक्ति देने का महान कार्य करके दशमी के दिन को पावन कर दिया। 

 दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल कीप्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। रावण को मारने से पूर्व राम ने दुर्गा की आराधना की थी।नौ दिनों तक माँ दुर्गा की आराधना करने के बाद भगवान श्रीराम ने दशहरे के दिन ही लंकापति रावण का वध किया था।मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था। 


ज्योतिष की मान्यता है इस दिन ग्रह नक्षत्रों के ऐसे संयोग होते हैं, जिनसे विजय सुनिश्चित होती है।विजयादशमी पर विजय निश्चित होती है यह अंधकार पर विजय का ऐसा दिन है जो हमें यह संकल्प लेने को प्रेरित करता है कि हम अपने भीतर के दुर्गुण रूपी रावण को मारें। बशर्ते वह अधर्म पर धर्म की विजय हो। हमारा लक्ष्य लोक मंगल हो और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय हो। रावण को दशानन कहा गया है। उसके 10 मुख दुर्गुणों के ही प्रतीक हैं।  आज की परिस्थिति में दुर्गुण-रूपी राक्षस दृष्टिगोचर होते हैं, हमारा संकल्प होना चाहिए कि इस विजयादशमी पर उनके विनाश के लिए हम अपने भीतर रामत्व का आह्वान करें। इस प्रकार दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। 

श्रीराम ने रावण के अहंकार को चूर-चूर करके दुनिया के लिए भी एक बहुत मूल्यवान शिक्षा प्रदान की, जिसकी हम सभी को रोजमर्रा के जीवन में बहुत जरूरी है। श्रीराम की यही सीख मानवीय जीवन में बहुउपयोगी सिद्ध होगी। हमें भी अपने जीवन काल में अहंकार, लोभ, लालच और अत्याचारी वृत्तियों को त्याग कर क्षमारूपी बनकर जीवन जीना चाहिए। भगवान राम की यह सीख बहुत ही सच्ची और हमें मोक्ष प्राप्ति की ओर ले जाने वाली है ।

 प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीलाका आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। 

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