तुलसी विवाह ( प्रबोधिनी एकादशी विशेष )


कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है.उस दिन तुलसी जी का विवाह शलिग्राम भगवान से किया जाता है. इसमें चमत्कारिक गुण मौजूद होते हैं. कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी अथवा देवोत्थान एकादशी के साथ ही विवाह आदि मंगल कार्यों का आरम्भ हो जाता है. प्रत्येक आध्यात्मिक कार्य में तुलसी की उपस्थिति बनी रहती है. वर्ष भर तुलसी का उपयोग होता है. सारे माहों में कार्तिक माह में तुलसी पूजन विशेष रुप से शुभ माना गया है. वैष्णव विधि-विधानों में तुलसी विवाह तथा तुलसी पूजन एक मुख्य त्यौहार माना गया है. कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी के पौधे को जल दिया जाता है. संध्या समय में तुलसी के चरणों में दीपक जलाया जाता है. कार्तिक के पूरे माह यह क्रम चलता है. इस माह की पूर्णिमा तिथि को दीपदान की पूर्णाहुति होती है.

पदम पुराण में कहा गया है कि तुलसी जी के दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापों की राशि नष्ट हो जाती है
,उनके स्पर्श से शरीर पवित्र हो जाता है,उन्हे प्रणाम करने से रोग नष्ट हो जाते है,सींचने से मृत्यु दूर भाग जाती है,तुलसी जी का वृक्ष लगाने से भगवान की सन्निधि प्राप्त होती है,और उन्हे भगवान के चरणो में चढाने से मोक्ष रूप महान फल की प्राप्ति होती है.

अंत काल के समय ,तुलसीदल या आमलकी को मस्तक या देह पर रखने से नरक का द्वार , आत्मा के लिए बंद हो जाता है

धात्री फलानी तुलसी ही अन्तकाले भवेद यदि
मुखे चैव सिरास्य अंगे पातकं नास्ति तस्य वाई 


 तुलसी नामाष्टक

तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है. इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति को पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है. यह बहुत पवित्र मानी जाती है और सभी पूजाओं में देवी तथा देवताओं को अर्पित की जाती है. तुलसी पूजा करने के कई विधान दिए गए हैं. उनमें से एक तुलसी नामाष्टक का पाठ करने का विधान दिया गया है. जो व्यक्ति तुलसी नामाष्टक का नियमित पाठ करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है. इस नामाष्टक का पाठ पूरे विधान से करना चाहिए. विशेष रुप से कार्तिक माह में इस पाठ को अवश्य ही करना चाहिए.

नामाष्टक पाठ
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी.
पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी.
एतभामांष्टक चैव स्तोत्रं नामर्थं संयुतम.
य: पठेत तां च सम्पूज सौsश्रमेघ फलंलमेता..
तुलसी जी के आठ नाम बताये गए है -
वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी

तुलसीजी के नामो के अर्थ 
१. वृंदा :- सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी
२. वृन्दावनी :- जिनका उदभव व्रज में हुआ
३. विश्वपूजिता :- समस्त जगत द्वारा पूजित
४. विश्व -पावनी :- त्रिलोकी को पावन करनेवाली
५. पुष्पसारा :- हर पुष्प का सार
६. नंदिनी :- ऋषि मुनियों को आनंद प्रदान करनेवाली
७. कृष्ण-जीवनी :- श्री कृष्ण की प्राण जीवनी
८. तुलसी :- अद्वितीय

 तुलसी जी का महत्व

तुलसी के दर्शन प्रतिदिन करने चाहिए. क्योंकि तुलसी को पाप का नाश करने वाली माना गया है. इसका पूजन करना श्रेष्ठ होता है. इसका पूजन मोक्ष देने वाला होता है. समस्त पूजा तथा धार्मिक कृत्यों में तुलसी का उपयोग किया जाता है. इसके पत्ते से पूजा, व्रत, यज्ञ, जप, होम तथा हवन करने का पुण्य मिलता है. तुलसी की दो किस्में पाई जाती हैं. पहली "कृष्ण तुलसी",जिन्हें श्यामा तुलसी भी कहा जाता है. दूसरी राम या रामा तुलसी होती है. दोनो प्रकार की तुलसी में केवल वर्ण भेद ही होता है अन्यथा गुणों में समानता होती है।इन दोनों तुलसी में से कृष्ण तुलसी सर्वाधिक प्रिय मानी गई है. भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी से बेहद लगाव था. श्रीकृष्ण जी को यदि तुलसी के पत्ते नहीं चढा़ए गए तो उनका पूजन अधूरा समझा जाता है. कार्तिक माह में विष्णु जी का पूजन तुलसी दल से करने का बडा़ ही माहात्म्य है. कार्तिक माह में यदि तुलसी विवाह किया जाए तो कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है.

श्री तुलसी प्रणाम
वृन्दायी तुलसी -देव्यै
प्रियायाई केसवास्य च
विष्णु -भक्ति -प्रदे देवी सत्यवात्याई नमो नमः"

मैं श्री वृंदा देवी को प्रणाम करती हूँ जो तुलसी देवी हैं , जो भगवान् केशव की अति प्रिय हैं - हे देवी !आपके प्रसाद स्वरूप , प्राणी मात्र में भक्ति भाव का उदय होता है.

श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र 
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि चतानि तानि प्रनश्यन्ति प्रदक्षिणायाम् पदे पदे

आपकी परिक्रमा का एक एक पद समस्त पापों का नाश कर्ता है


 तुलसी जी की आरती

तुलसी महारनी नमो-नमो, हरि कि पटरानी नमो-नमो
धन तुलसी पुरन तप कीनो शालिग्राम बनी पटरानी
जाके पत्र मंजर कोमल, श्रीपति कमल चरण लपटानी
धूप-दीप -नवेध आरती , पुष्पन कि वर्षा बरसानी
छप्पन भोग ,छत्तीसो व्यंजन ,बिन तुलसी हरि एक ना मानी
सभी सुखी मैया, तेरो यश गावे , भक्ति दान दीजै महारानी
नमो-नमो तुलसी महरानी , नमो-नमो तुलसी महारानी

 तुलसी महिमा

तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करने से पापों से मुक्ति मिलती है। यानी रोजाना तुलसी का पूजन करना मोक्षदायक माना गया है.यही नहीं तुलसी पत्र से पूजा करने से भी यज्ञ, जप, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। पर यह तभी संभव है, जब आप पूरी आस्था के साथ तुलसी जी की सेवा कर पाते हैं। पूजा का सही-विधान जानने के साथ-साथ तुलसी के प्रति आदर रखना भी जरूरी है। पद्म पुराण में कहा गया है की नर्मदा दर्शन गंगा स्नान और तुलसी पत्र का संस्पर्श ये तीनो समान पुण्य कारक है .

दर्शनं नार्मदयास्तु गंगास्नानं विशांवर
तुलसी दल संस्पर्श: सम्मेत त्त्रयं"

ऐसा भी वर्णन आता है की जो लोग प्रातः काल में गत्रोत्थान पूर्वक अन्य वस्तु का दर्शन ना कर सर्वप्रथम तुलसी का दर्शन करते है उनका अहोरात्रकृत पातक सघ:विनष्ट हो जाता है.

तुलसी दल और मंजरी चयन समय कुछ बातों का ख्याल रखें।

तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंजरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना गया है। तुलसी का एक-एक पत्ता तोड़ने के बजाय पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिए. यही शास्त्रसम्मत भी है.प्राय: पूजन में बासी फूल और पानी चढ़ाना निषेध है, पर तुलसीदल और गंगाजल कभी बासी नहीं होते। तीर्थों का जल भी बासी नहीं होता।

निम्न मंत्र को बोलते हुए पूज्यभाव से तुलसी के पौधे को हिलाए बिना तुलसी के अग्रभाग को तोडे़. इससे पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है.
तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया।
चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।।
त्वदंगसंभवै: पत्रै: पूजयामि यथा हरिमृ।
तथा कुरु पवित्रांगि! कलौ मलविनाशिनि।।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में श्री भगवान तुलसी के प्रति कहते है - पूर्णिमा, अमावस्या , द्वादशी, सूर्यसंक्राति , मध्यकाल रात्रि दोनों संध्याए अशौच के समय रात में सोने के पश्चात उठकर,स्नान किए बिना,शरीर के किसी भाग में तेल लगाकर जो मनुष्य तुलसी दल चयन करता है वह मानो श्रीहरि के मस्तक का छेदन करता है.

द्वादशी तिथि को तुलसी चयन कभी ना करे, क्योकि तुलसी भगवान कि प्रेयसी होने के कारण हरि के दिन -एकादशी को निर्जल व्रत करती है.अतः द्वादशी को शैथिल्य,दौबल्य के कारण तोडने पर तुलसी को कष्ट होता है.

तुलसी चयन करके हाथ में रखकर पूजा के लिए नहीं ले जाना चाहिये शुद्ध पात्र में रखकर अथवा किसी पत्ते पर या टोकरी में रखकर ले जाना चाहिये.

इतने निषिद्ध दिवसों में तुलसी चयन नहीं कर सकते,और बिना तुलसी के भगवत पूजा अपूर्ण मानी जाती है अतः वारह पुराण में इसकी व्यवस्था के रूप में निर्दिष्ट है कि निषिद्ध काल में स्वतः झडकर गिरे हुए तुलसी पत्रों से पूजन करे.और अपवाद स्वरुप शास्त्र का ऐसा निर्देश है कि शालग्राम कि नित्य पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी दल का चयन किया जा सकता है.

 राधा रानी जी ने कैसे कि तुलसी सेवा

एक बार राधा जी सखी से बोली - सखी ! तुम श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए किसी देवता की ऐसी पूजा बताओ जो परम सौभाग्यवर्द्धक हो.

तब समस्त सखियों में श्रेष्ठ चन्द्रनना ने अपने हदय में एक क्षण तक कुछ विचार किया. फिर बोली चंद्रनना ने कहा- राधे ! परम सौभाग्यदायक और श्रीकृष्ण की भी प्राप्ति के लिए वरदायक व्रत है -"तुलसी की सेवा" तुम्हे तुलसी सेवन का ही नियम लेना चाहिये. क्योकि तुलसी का यदि स्पर्श अथवा ध्यान, नाम, संकीर्तन, आरोपण, सेचन, किया जाये. तो महान पुण्यप्रद होता है. हे राधे ! जो प्रतिदिन तुलसी की नौ प्रकार से भक्ति करते है.वे कोटि सहस्त्र युगों तक अपने उस सुकृत्य का उत्तम फल भोगते है.

मनुष्यों की लगायी हुई तुलसी जब तक शाखा, प्रशाखा, बीज, पुष्प, और सुन्दर दलों, के साथ पृथ्वी पर बढ़ती रहती है तब तक उनके वंश मै जो-जो जन्म लेता है, वे सभी हो हजार कल्पों तक श्रीहरि के धाम में निवास करते है. जो तुलसी मंजरी सिर पर रखकर प्राण त्याग करता है. वह सैकड़ो पापों से युक्त क्यों न हो यमराज उनकी ओर देख भी नहीं सकते. इस प्रकार चन्द्रनना की कही बात सुनकर रासेश्वरी श्री राधा ने साक्षात् श्री हरि को संतुष्ट करने वाले तुलसी सेवन का व्रत आरंभ किया.
श्री राधा रानी का तुलसी सेवा व्रत

केतकी वन में सौ हाथ गोलाकार भूमि पर बहुत ऊँचा और अत्यंत मनोहर श्री तुलसी का मंदिर बनवाया, जिसकी दीवार सोने से जड़ी थी. और किनारे-किनारे पद्मरागमणि लगी थी, वह सुन्दर-सुन्दर पन्ने हीरे और मोतियों के परकोटे से अत्यंत सुशोभित था, और उसके चारो ओर परिक्रमा के लिए गली बनायीं गई थी जिसकी भूमि चिंतामणि से मण्डित थी. ऐसे तुलसी मंदिर के मध्य भाग में हरे पल्लवो से      सुशोभित तुलसी की स्थापना करके श्री राधा ने अभिजित मुहूर्त में उनकी सेवा प्रारम्भ की.

श्री राधा जी ने आश्र्विन शुक्ला पूर्णिमा से लेकर चैत्र पूर्णिमा तक तुलसी सेवन व्रत का अनुष्ठान किया. व्रत आरंभ करने उन्होंने प्रतिमास पृथक-पृथक रस से तुलसी को सींचा ."कार्तिक में दूध से", "मार्गशीर्ष में ईख के रस से",पौष में द्राक्षा रस से", "माघ में बारहमासी आम के रस से", "फाल्गुन मास में अनेक वस्तुओ से मिश्रित मिश्री के रस से" और "चैत्र मास में पंचामृत से"उनका सेचन किया .और वैशाख कृष्ण प्रतिपदा के दिन उद्यापन का उत्सव किया.

उन्होंने दो लाख ब्राह्मणों को छप्पन भोगो से तृप्त करके वस्त्र और आभूषणों के साथ दक्षिणा दी. मोटे-मोटे दिव्य मोतियों का एक लाख भार और सुवर्ण का एक कोटि भार श्री गर्गाचार्य को दिया . उस समय आकाश से देवता तुलसी मंदिर पर फूलो की वर्षा करने लगे.

उसी समय सुवर्ण सिंहासन पर विराजमान हरिप्रिया तुलसी देवी प्रकट हुई . उनके चार भुजाएँ थी कमल दल के समान विशाल नेत्र थे सोलह वर्ष की सी अवस्था और श्याम कांति थी .मस्तक पर हेममय किरीट प्रकाशित था और कानो में कंचनमय कुंडल झलमला रहे थे गरुड़ से उतरकर तुलसी देवी ने रंग वल्ली जैसी श्री राधा जी को अपनी भुजाओ से अंक में भर लिया और उनके मुखचन्द्र का चुम्बन किया .

तुलसी बोली -कलावती राधे ! मै तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ, यहाँ इंद्रिय, मन, बुद्धि, और चित् द्वारा जो जो मनोरथ तुमने किया है वह सब तुम्हारे सम्मुख सफल हो.

इस प्रकार हरिप्रिया तुलसी को प्रणाम करके वृषभानु नंदिनी राधा ने उनसे कहा देवी! गोविंद के युगल चरणों में मेरी अहैतु की भक्ति बनी रहे. तब तथास्तु कहकर हरिप्रिया अंतर्धान हो गई. इस प्रकार पृथ्वी पर जो मनुष्य श्री राधिका के इस विचित्र उपाख्यान को सुनता है वह भगवान को पाकर कृतकृत्य हो जाता है .


 तुलसी भक्षण (खाने) के अद्भुत लाभ 

१. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि किसी के मुख मस्तक अथवा कर्णद्वय में तुलसी पत्र को देखकर यमराज अथवा उसके पापों को विदुरित कर देते है.तुलसी भक्षण करने से चंद्रायण, तप्तकृच्छ, ब्रह्कुर्त्य व्रत, से भी अधिक देह शुद्ध होती है.

२.  स्कंध पुराण में कहा गया है - स्वयं श्री विष्णु स्वर्णमय अथवा पद्म राग मनिमय यहाँ तक कि रत्न खचित विविध शुभ पुष्प को परित्याग करके तुलसी पत्र ग्रहण करते है व्याध भी यदि तुलसी पत्र भक्षण करके देह त्याग करता है तो उसके देह्स्थ पाप भस्मीभूत हो जाते है.जिस प्रकार शुक्ल और कृष्ण वर्ण जल अर्थात गंगा और यमुना का जल पातक को विनष्ट करता है उसी प्रकार रामा और श्यामा तुलसी पत्र भक्षण से सर्वभिलाषा सिद्ध होती है .

३. - जैसे अग्नि समस्त वन को जला देती है उसी प्रकार तुलसी भक्षण समस्त पापों को जला देता है.अमृत से आवला और तुलसी श्री हरि की वल्लभा है इनदोनो के स्मरण कीर्तन ध्यान और भक्षण करने से समस्त कामनाये पूर्ण होती है

४. मृत्यु काल के समय मुख मस्तक और शरीर में आमलकी की फल और तुलसी पत्र विघमान हो तो कभी भी उसकी दुर्गति नहीं हो सकती. यदि कोई मानव पाप लिप्त होता है और कभी पुण्य अर्जन नहीं किया तो वह भी तुलसी भक्षण करके मुक्त हो जाता है.स्वयं भगवान ने कहा है कि शरीर त्याग करने से पूर्व यदि मुख में तुलसी पत्र डाल दिया जाये तो वह मेरे लोक में जाता है. 

५. - ऐसा भी वर्णन आता है कि द्वादशी तिथि में उपवास करने पर दिन में पारण करते समय तुलसी पत्र भक्षण करने से अष्ट अश्वमेघ यज्ञानुष्ठान का फल मिल जाता है.

सूची

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