नारद जयंती ( २६ मई २०१३ विशेष )

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास के प्रथम दिन देवर्षि नारद का पूजन किया जाता है। इस दिन नारद जयंती भी मनाई जाती है। इस बार नारद जयंती २६ मई, रविवार  को है।

शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा गया है। ग्रंथों में देवर्षि नारद को भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है। श्रीमद्भागवतगीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। 

महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले और सर्वत्र गति वाले हैं। अठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है।


भारतीय सनातन धर्म में कई महान अवतारों, ऋषि-मुनियों और देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है। त्रि देवों श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु और श्री महादेव जी की भी अपनी-अपनी भूमिकाएं हैं। भक्तों में श्री हनुमान, प्रह्लाद व सुदामा जी जैसे कई उदाहरण मिलते हैं लेकिन चर्चा अगर श्री हरि यानी विष्णु जी के परम भक्तों की हो तो जो नाम सबसे ऊपर आता है, वह है श्री नारद जी। श्री बह्मा जी के पुत्र श्री नारद देवर्षि भी हैं। ज्ञान, भक्ति और ब्रह्मचर्य के प्रतीक श्री नारद जी वीणावादन करते हुए 'नारायण-नारायण' का जाप करते हुए सूचना संग्रहण व इसके प्रसार सहित हरि भक्ति में लीन रहते हैं।

असुरों, दैत्यों, देवताओं और ऋषियों सभी वर्गों में हमेशा उनका आदर होता है। कारण है उनका ज्ञान। तीनों लोकों में दूसरों के कल्याण के लिए घूमने वाले नारद जी ने श्री विष्णु के भक्त दैत्य पुत्र प्रह्लाद को धर्म की शिक्षा दी और विष्णु भक्ति का मार्ग सुझाया। असुर हो या देवता, भू-लोक के शासक हों या गंधर्व सभी को संकट के बारे में सूचना देना और उपाय बताना व भविष्य में आने वाले संकट के प्रति चेताना उनकी प्रवृत्ति रही है। कहते हैं कि देवर्षि नारद एक जगह ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकते। वह चलायमान रहते हैं। 
उनके भीतर भक्त रूप में इतनी शक्ति है कि एक बार उन्होंने अपने ईष्ट श्री हरि को ही शाप दे डाला। बाद में विष्णु अवतार रामचंद्र को इस शाप का फल भुगतना पड़ा।

वैशाख समाप्त होते ही जेष्ठ कृष्ण द्वितीया श्री नारद जयंती जिस का साहित्य संगीत और कला क्षेत्र के लोगों द्वारा 'वीणादिवाद्ययंत्र दानम्‌' के रूप में मनाया जाता है। नारद जी के तत्व चिंतन से प्रेरणा लेनी की आवश्यकता है कि लोककल्याण किस प्रकार होता है।

सूची

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