श्री हरि हर स्वरूप की कथा (वैकुंठ चतुर्दशी विशेष)
गीता प्रसार पर आपका सादर अभिनन्दन है |
जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी)
जन्माष्टमी को भगवान श्री कृष्ण जी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप से पूजा का विधान है। लेकिन भक्तों का अपने भावों के अनुरूप किसी भी रुप में श्री कृष्ण की आराधना की जा सकती है।
जन्माष्टमी की सरल पूजन विधि -
- चौकी पर साफ कपड़ा बिछा लीजिए ।
- भगवान कृष्ण की मूर्ति चौकी पर एक पात्र में रखिए।
- अब दीपक जलाएं और साथ ही धूपबत्ती भी जला लीजिए।
- भगवान कृष्ण से प्रार्थना करें कि 'हे भगवान कृष्ण ! कृपया पधारिए और पूजा ग्रहण कीजिए।
- श्री कृष्ण को पंचामृत से स्नान कराएं।
- फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं ।
- इसके बाद अब श्री कृष्ण को वस्त्र पहनाएं और श्रृंगार कीजिए।
- भगवान कृष्ण को दीप दिखाएं. इसके बाद धूप दिखाएं।
- फिर अष्टगंध चन्दन या रोली का तिलक लगाएं और साथ ही अक्षत (चावल) भी तिलक पर लगाएं। फूल हो तो फूल चढ़ाएं ।
- माखन मिश्री और अन्य भोग सामग्री अर्पण कीजिए और तुलसी का पत्ता विशेष रूप से अर्पण कीजिए।
- साथ ही पीने के लिए निर्मल शीतल जल रखें।
- तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण का इस प्रकार ध्यान कीजिए
श्री कृष्ण बच्चे के रूप में पीपल के पत्ते पर लेटे हैं. उनके शरीर में अनंत ब्रह्माण्ड हैं और वे अंगूठा चूस रहे हैं. इसके साथ ही श्री कृष्ण के भक्ति मुक्ति प्रदाता स्वरूप का नाम अथवा मंत्र सहित बार बार चिंतन कीजिए. कृष्ण का अर्थ है वह जो परमानंद या पूर्ण मोक्ष की ओर आकर्षित करता है, वही कृष्ण है। मंत्र के रूप में आप ऊॅं नमो भगवते वासुदेवाय का भी जप कर सकते हैं।
- इसके बाद आरती करें ।
- इसके बाद विसर्जन के लिए हाथ में फूल और चावल लेकर चौकी पर छोड़ें और कहें : हे भगवान् कृष्ण! पूजा में पधारने के लिए धन्यवाद. कृपया मेरी पूजा और जप ग्रहण कीजिए और पुनः अपने दिव्य धाम को पधारिए ।
- साष्टांग प्रणाम कर क्षमा याचना करें और यदि कोई अभीष्ट हो तो वह परमात्मा के समक्ष निवेदन करें ।
*भगवान बाल गोपाल इस पूजन से प्रसन्न होकर आपकी सभी शुभ मनोकामनाएं पूर्ण करें ।*
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