गोवत्स द्वादशी ( 10 नवंबर 2012 विशेष )

कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशीके नामसे जानी जाती है । इस प्रकार यह त्यौहार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है.यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है । इसे बछवारस के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 2012 में यह त्यौहार 10 नवम्बर, दिन शनिवार को मनाया जाएगा. इस दिन गायों तथा उनके बछडो़ की सेवा की जाती है. इसे पुत्रवती स्त्रियां ही करती हैं। सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर गाय तथा बछडे़ का पूजन किया जाता है. आधुनिक समय में कई लोगों के घरों में गाय नहीं होती है. वह किसी दूसरे के घर की गाय का पूजन कर सकते हैं. यदि घर के आसपास भी गाय और बछडा़ नहीं मिले तब गीली मिट्टी से गाय तथा बछडे़ को बनाए और उनकी पूजा करें. इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग नहीं किया जाता है; दीपावलीके कालमें उत्पन्न अस्थिरतासे होनेवाली हानिसे बचने हेतु दीपावली के पूर्व गोवत्सद्वादशीका व्रतविधान किया गया है । गोवत्सद्वादशीको गौपूजनकी कृति कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । इससे व्यक्तिमें लीनता बढती है । फलस्वरूप कुछ क्षण उसका आध्यात्मिक स्तर बढता है । गौपूजन व्यक्तिको चराचरमें ईश्वरीय तत्त्वका दर्शन करनेकी सीख देता है । व्रती सभी सुखोंको प्राप्त करता है ।

गोवत्स द्वादशी पूजा विधि 


सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इस दिन दूध देने वाली गाय को बछडे़ सहित स्नान कराते हैं. फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है. दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं. दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं. सींगों को मढा़ जाता है. तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए. मंत्र है -
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृतेI
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:II
ऊपर लिखे मंत्र का अर्थ है कि समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से उत्पन्न सुर तथा असुरों द्वारा नमस्कार की गई देवस्वरुपिणी माता, आपको बार-बार नमस्कार है. मेरे द्वारा दिए गए इस अर्ध्य को आप स्वीकार करें. इस विधि को करने के बाद गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए. मंत्र है -
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता I
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस II
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते I
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी II
उपरोक्त प्रार्थना का अर्थ है कि हे जगदम्बे, हे स्वर्गवासिनी देवी, हे सर्वदेवमयी आप मेरे द्वारा दिए इस अन्न को ग्रहण करें. सभी देवतओं द्वारा अलंकृत माता नन्दिनी आप मेरा मनोरथ पूर्ण करें. गऊ माता का पूजन करने के बाद गोवत्स की कथा सुनी जाती है. सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है. उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.

यदि किसी के यहां गाय व बछड़े न हों तो वह किसी दूसरे की गाय या बछड़े की पूजा करें। यदि गांव में भी न हों तो गीली मिट्टी से गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाटे पर रखकर उनकी पूजा करें। उस पर दही, भीगा हुआ बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाएं। रोली से तिलक करें, चावल और दूध चढ़ाएं। 

फिर मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें। इस दिन बाजरे की ठंडी रोटी खाएं। गाय का दूध, दही, गेहूं व चावल न खाएं। अपने कुंवारे लड़के की कमीज पर स्वस्तिक बनाकर तथा पहनाकर कुएं की पूजा करें। इससे बच्चे के जीवन की रक्षा होती है और वह भूत-प्रेत तथा नजर के प्रकोप से बचा रहता है।

गोवत्स द्वादशी की कथा 

प्राचीन समय में पूर्व भारत में सुवर्णपुर नाम का नगर था. उस नगर में देवदानी राजा राज्य करता था. उसके पास एक गाय और एक भैंस थी. राजा की दो रानियाँ थी. एक नाम सीता तो दूसरी का नाम गीता था. सीता भैंस से सहेली के समान प्यार करती थी और गीता गाय से सहेली के समान और बछडे़ से पुत्र समान प्यार करती थी. एक दिन भैंस सीता से कहती है कि गाय, बछडा़ होने पर गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है. सीता कहती है यदि ऎसी बात है तब मैं सब ठीक कर लूंगी. सीता उसी दिन गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं की राशि में दबा देती है. इस बात के विषय में किसी को भी पता नहीं चला.
राजा जब भोजन करने बैठा तो मांस तथा खून की वर्षा होने लगी. महल में सभी ओर खून तथा मांस दिखाई देने लगा. राजा के भोजन की थाली में मल-मूत्र दिखाई देने लगा. ऎसा देखकर राजा को बहुत चिन्ता हुई. उसी समय आकाशवाणी होती है कि हे राजा! तेरी रानी ने गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं की राशि में दबा दिया है. इसी कारण यह सब हो रहा है. कल गोवत्स द्वादशी है. इसलिए आप कल भैंस को नगर से बाहर निकालें और गाय तथा बछडे़ की पूजा करें. आप कल गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करें. इससे तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा और बछडा़ भी जिन्दा हो जाएगा |

राजा ने ऐसा ही किया । जैसे ही राजा ने मन से बछडे को याद किया वैसे ही बछडा गेहूँ के ढेंर से निकल आया । यह देख राजा प्रसन्न हो गया । उसी समय से राजा ने अपने राज्य में आदेश दिया कि सभी लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत करें। 

बछवारस का उद्यापन(उजमन)

जिस वर्ष लड़के का विवाह हो या लड़का पैदा हो तो उजमन किया जाता है। इस दिन से एक दिन पहले बाजरा दान दें। बछवारस के दिन एक थाली में तेरह मोंठ बाजरे की ढेरी बनाकर उन पर दो मुट्ठी बाजरे का आटा, जिसमें घी-शक्कर मिली हो रख दें। तिल और रुपए रखें। इस सामान को हाथ फेरकर अपनी सास को दें और पांव छूकर आशीर्वाद लें। बाद में बछड़े और कुएं की पूजा करें फिर मंगल गीत गाएं व ब्राह्मण को दक्षिणा दें।

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