अन्नकूट पर्व व गोवर्धन पूजा


अन्नकूट पर्व व गोवर्धन पूजा





कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी दीपावली का अगला दिन गोवर्धन पूजन, गौ पूजन के साथ-साथ अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है। अन्नकूट पूजा में भगवान विष्णु अथवा उनके अवतार और अपने इष्ट देवता का इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर पूजन किया जाता हैं। इसे छप्पन भोग की संज्ञा भी दी गई हैं। इस दिन सुबह ही नहा धोकर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने इष्टों का ध्यान करते हैं। इसके पश्चात अपने घर या फिर देव स्थान के मुख्य द्वार के सामने गोबर से गोवर्धन बनाना शुरू किया जाता है। इस पर रूई और करवे की सीकें लगाकर पूजा की जाती है। गोबर पर खील, बताशा और शक्कर के खिलौने चढ़ाये जाते हैं। गांव में इस पशुओं की पूजा का भी महत्व है। गांव-गांव में पशु पालक और किसान गोवर्धन पूजा करते हैं। पशुओं को नहला,धुलाकर उन्हें सजाया जाता है। 



कथा 




भगवान कृष्ण अपने गोपी और  ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो देखा कि वहां गोपियां 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज वृत्रासुर को मारने वाले तथा मेघों व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होता है। इसे इंद्रोज यज्ञ कहते हैं। इससे प्रसन्न होकर ब्रज में वर्षा होती है, अन्न पैदा होता है। श्रीकृष्ण ने कहा कि इंद्र में क्या शक्ति है, उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसके कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र की गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। श्रीकृष्ण की यह बात ब्रजवासियों ने मानी और गोवर्धन पूजा की तैयारियां शुरू हो गई। सभी गोप-ग्वाल अपने अपने घरों से पकवान लाकर गोवर्धन की तराई में श्रीकृष्ण द्वारा बताई विधि से पूजन करने लगे। नारद मुनि भी यहां इंद्रोज यज्ञ देखने पहुंच गए थे। इंद्रोज बंदकर के बलवान गोवर्धन की पूजा ब्रजवासी कर रहे हैं यह बात इंद्र तक नारद मुनि द्वारा पहुंच गई और इंद्र को नारद मुनि ने यह कहकर और डरा भी दिया कि उनके राज्य पर आक्रमण करके इंद्रासन पर भी अधिकार शायद श्रीकृष्ण कर लें। इंद्र गुस्सा गये और मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जा कर प्रलय पैदा कर दें। ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश होने लगी। सभी भयभीत हो उठे। सभी ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में पहुंचते ही उन्होंने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। वही सब की रक्षा करेंगे। जब सब गोवर्धन पर्वत की तराई मे पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगुली पर उठाकर छाता सा तान दिया और सभी की मूसलाधार हो रही बारिश से बचाया। ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इंद्रदेव को अपनी की गलती का अहसास हुआ और वे श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। सात दिन बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजवासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।

पूजन विधि


यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गोबर से गोवर्धन बनाएं। गोबर का अन्नकूट बनाकर उसके समीप विराजमान श्रीकृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों, इंद्र, वरुण, अग्नि और बलि का पूजन षोडशोपचार द्वारा करें। विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाकर पहाड़ की आकृति तैयार करें और उनके मध्य श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। पूजन के पश्चात कथा सुनें। प्रसाद रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें। फिर पुरोहित को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा से प्रसन्न करें।



 गोवर्धन पूजा विशेष : यह भी देखें 



गीता प्रसार : फोटो संग्रह गीता प्रसार : धार्मिक स्थल गीता प्रसार : मंत्र संग्रह
श्री गोवर्धन परिक्रमा श्री गोवर्धन धाम श्री गिरिराज स्तुति

सूची

  • रमा एकादशी - सनातन धर्म में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी रमा एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के दामोदर स्वरूप के पूजन का विधान है। कार्ति...
  • राधा और कृष्ण के विवाह की कथा - श्रीकृष्ण के गुरू गर्गाचार्य जी द्वारा रचित “गर्ग संहिता” में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं का सबसे पौराणिक आधार का वर्णन किया गया है। गर्ग संहिता के सोलह...
  • ऋषि पंचमी पर ऋषियों का पूजन अवश्य करें - ऋषि पंचमी पर ऋषियों का पूजन अवश्य करना चाहिए। समाज में जो भी उत्तम प्रचलन, प्रथा-परम्पराएं हैं, उनके प्रेरणा स्रोत ऋषिगण ही हैं। इन्होंने विभिन्न विषयों पर...
  • देवर्षि नारद - नारद मुनि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अन...
  • बोध गया - गया जी गया बिहार के महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थानों में से एक है। यह शहर ख़ासकर हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए काफ़ी मशहूर है। यहाँ का 'विष्णुपद मंदिर' पर्यटकों ...
  • श्रीकृष्ण ने क्यों माना है ध्यान को जरुरी? - श्रीकृष्ण ने क्यों माना है ध्यान को जरुरी? भागवत में भगवान कृष्ण ने ध्यान यानी मेडिटेशन पर अपने गहरे विचार व्यक्त किए हैं। वैसे इन दिनों ध्यान फैशन का व...

1

0