यम द्वितीया या भाई दूज


भैया दूज के साथ ही होती है चित्रगुप्त पूजा

यम द्वितीया कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाला हिन्दू धर्म का एक त्योहार है जिसे भाई दूज भी कहते हैं। भाई दूज में हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं तथा उसकी लंबी उम्र की मनोकामना करती है। कार्तिक सुदी दौज  पर भाई–बहन हाथ पकड़कर यमुना में एक साथ स्नान करते हैं।  यम की बहन यमुना है और  इस दिन यमराज की बहन यमुनाजी ने अपने उन्हें तिलक करके भोजन कराया था इसलिए इस दिन को यम द्वीतिया  कहा जाता है। बहन-भाई मिलन के इस पर्व को अब भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता।

इस दिन प्रातःकाल चंद्र-दर्शन की परंपरा है और इस दिन यमुना में स्नान करके यमुना तथा यमराज के पूजन का विशेष विधान है अतः जिसके लिए भी संभव होता है वो यमुना नदी के जल में स्नान करते हैं। स्नानादि से निवृत्त होकर दोपहर में बहन के घर जाकर वस्त्र और द्रव्य आदि द्वारा बहन का सम्मान किया जाता है और वहीं भोजन किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से कल्याण या समृद्धि प्राप्त होती है। विवाहिता बहनें अपने भाइयों को अपने घर ससुराल में आमंत्रित करती हैं, जबकि अविवाहिता बहनें अपने पिता के घर पर ही भाइयों को भोजन कराती हैं। बदलते हुए समय को देखें तो यह व्यस्त जीवन में दो परिवारों को मिलने और साथ समय बिताने का सर्वोत्तम उपाय है। ऐसा कहा गया है कि यदि अपनी सगी बहन न हो तो पिता के भाई की कन्या, मामा की पुत्री, मौसी अथवा बुआ की बेटी – ये भी बहन के समान हैं, इनके हाथ का बना भोजन करें। जो पुरुष यम द्वितीया को बहन के हाथ का भोजन करता है, उसे धन, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है। यम द्वितीय के दिन सायंकाल घर में बत्ती जलाने से पूर्व, घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान करने का नियम भी है।


इस त्योहार के प्रति भाई बहनों में काफ़ी उत्सुकता रहती है और वे इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इस दिन भाई-बहन सुबह सवेरे स्नान करके नये वस्त्र धारण करते हैं। बहनें आसन पर चावल के घोल से चौक बनाती हैं। इस चौक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं | जो भाई और बहन यम द्वीतिया के दिन इस प्रकार दूज पूजन के बाद तिलक की रस्म पूरी करने के बाद भोजन करते हैं वे यम भय से मुक्त जो जाते हैं, उन्हें मृत्यु के पश्चात स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।

इस दिन गोधन कूटने की भी प्रथा है। गोबर से बनी मनुष्याकृति बनाकर उसकी छाती पर ईंट रखी जाती है और उस पर स्त्रियां मूसल से प्रहार करती हुई उसे तोड़ती हैं, कथा सुनती हैं।

यम द्वितीया दिन चित्रगुप्त पूजा भी होती है। भगवान चित्रगुप्त स्वर्ग और नरक लोक का लेखा-जोखा रखते हैं। इस पूजा को कलम दवात पूजा भी कहा जाता है। चित्रवंशियों के लिये यह पूजा अति महत्वपूर्ण होती है। इस दिन लगभग सभी चित्रवंशी अपनी कलम की पूजा करते हैं।


कथा


भगवान सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं। उनमें पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण अपनी ही प्रतिकृति छाया बनाकर तपस्या करने चली गयीं|तथा छाया सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा बनकर रहने लगी। इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ है, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं । छाया का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख दु:खी होती, इसलिए वह गोलोक चली गई। 

समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर यम स्वयं गोलोक गए जहां यमुनाजी की उनसे भेंट हुई। इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। 
यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती हैं। वह उनसे बराबर निवेदन करतीं कि वह उनके घर आकर भोजन करें, लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वीतिया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया।भाई को देखते ही यमुना ने हर्षविभोर होकर भाई का स्वागत किया और स्वादिष्ट भोजन करवाया। इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने वर मांगा कि- 'हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी नहीं जाए।' 

यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन-ही-मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भाई को चिंतित देख, बहन बोली- भैया आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को वरदान दे दिया तथा यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमपुरी चले गये। ।


यम द्वीतिया महात्म्य कथा 

सौराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सौदास था। राजा अधर्मी और पाप कर्म करने वाला था। इस राजा ने कभी को पुण्य का काम नहीं किया था। एक बार शिकार खेलते समय जंगल में भटक गया। वहां उन्हें एक ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे थे। राजा उत्सुकतावश ब्रह्ममण के समीप गया और उनसे पूछा कि यहां आप किनकी पूजा कर रहे हैं। ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है इस दिन मैं यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहा हूं। इनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है। राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं चित्रगुप्त और यमराज की पूजा की।

काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये। दूत राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए ले गये। लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचा तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और कहा कि हे यमराज यूं तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप कर्म ही किए हैं परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया है अत: इसके पाप कट गये हैं और अब इसे धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी।



पूजन विधि


भाई दूज पर्व पर बहनें प्रात: नित्य कृत्य से निवृत्त हो स्नान कर अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष हेतु तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए इस व्रत का संकल्प कर अपने ईष्ट देव की प्रतिमा में ही  मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक षोडशोपचार पूजा करें | इसके पश्चात बहन-भाई दोनों मिलकर यम, यमभगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए तथा सबको अर्ध्य  दें।

तदंतर अक्षत (चावल) कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर चावल के आटे से चौक तैयार करें और भाई के आने पर उसे उपयुक्त स्थान देते हुए इस चौक पर भाई को बैठा कर  उनके हाथों की पूजा करें भाई की हथेली पर बहने चावल का घोल लगाकर उसके ऊपर सिन्दुर लगाकर कद्दु के फूल, पान, सुपारी, मुद्रा आदि हाथों पर रख कर धीरे धीरे हाथों पर पानी छोडते हुए  प्रार्थना करें कि मार्कण्डेय, हनुमान, बलि, परशुराम, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य इन आठ चिरंजीवियों की तरह मेरे भाई को भी चिरंजीवी कर दें। इसके पश्चात अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारें  और फिर हथेली में कलावा बांधें  भाई का मुंह मीठा करने के लिये भाईयों को माखन - मिश्री खिलाए इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिए.

तदंतर भाई को तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिए. ऐसा विश्वास भी प्रचलित है कि इस दिन बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराए तो उसकी उम्र बढ़ती है और उसके जीवन के कष्ट दूर होते है | भोजन कराने के बाद भाई यथाशक्ति बहन को भेंटदेकर प्रसन्न करे। जिसमें स्वर्ग, आभूषण, वस्त्र आदि प्रमुखता से दिए जाते हैं। बहन के चरण स्पर्श कर आशीष ले। बहन चाहे छोटी या आयु में बड़ी हो उसके चरण स्पर्श अवश्य करें।

संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर दीये का मुख दक्षिण दिशा की ओर करके रख देती है. इस दिन आसमान में उड्ती हुई चील देखने के विषय में यह मान्यता है कि बहने भाईयों की आयु के लिये जो दुआ मांगती है, वह दूआ पूरी होती है.



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