श्री राम जय राम जय जय राम |
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चौपाई |
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बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥ |
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सन्दर्भ |
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यह चौपाई बालकाण्ड के आरम्भ में सत्संग महिमा का वर्णन करते हुए कही गयी है। |
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अर्थ |
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दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं। (अर्थात् जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।) |
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उत्तर |
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बुरे लोगों का संग छोड़ दें, कार्य पूर्ण होने में संदेह है । |
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श्री राम श्लोकी प्रश्नावली - गीता प्रसार |